क्यूँ हनुमान जी ने चीरा अपना सीना

श्री राम जानकी बैठे है मेरे सीने मे ये भजन तो हम सबने ही सुना है । और ये भजन सुनते ही हम सभी झूम उठते है । पर क्या आप इस भजन के पीछे की कहानी को जानते है , क्यू राम जी के भक्त हनुमान को अपनी भक्ति साबित करने के लिए अपना सीना चीरना पड़ा था । तो आइए जानते है हनुमान जी को ऐसा क्यू करना पड़ा ।

भगवान राम जब रावण पर विजय प्राप्त कर अयोध्या वापस लौटे तो उनका धूम धाम राज्याभिषेक किया गया । जिसके बाद वो शांति से अपना राज पाठ सम्भालने लगे जिसे आज हम सभी रामराज्य के नाम से जानते है । ऐसे ही एक दिन राम दरबार लगा था सभी देश दुनिया की बातें कर रहे थे ।

सभा के एक तरफ़ विभीषण और बाक़ी के ज्ञानी लोग बैठे थे तो सभा के दूसरी ओर सुग्रीव और उनकी वानर सेना बैठी थी ।  और हनुमान जी हमेशा की तरह अपने प्रभु श्रीराम के चरणो में बैठे थे तभी माता सीता ने हनुमान जी की भक्ति भाव से प्रसन्न होकर उन्हें एक मणि माणिक्य से सजी हुई हार भेंट करती है । ये हार सबसे पहले विभीषण ने प्रभु श्रीराम को भेंट दिया था । जिसे बाद में प्रभु राम ने माता सीता को प्रेम स्वरूप ये हार भेंट किया था । और अंततः माता सीता ने इसे अपने सबसे प्रिय भक्त हनुमान को भेंट किया । माला मिलने के बाद हनुमान जी ने उसे गौर से देखा  जिसके बाद उन्हें संतुष्टि नहीं हुई तो वो थोड़ी दूरी पर जाकर माला को और ध्यान से देखने लगे मानो  वो उसमें कुछ ढूँढ रहे हों । लेकिन कुछ ख़ास चीज़ ना मिलने पर हनुमान  जी ने उस माला को तोड़ना शुरू कर दिया और उसके एक एक मोती को बड़े ही गौर से निहारने लगे  और सभी मोती को गौर से देखने के बाद वो उसे तोड़कर तोड़कर फेकने लगे ऐसा करते हुए हनुमान जी ने उस माला को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया था । ये सब दरबार में उपस्थित सभी  लोगों ने देखा तो सब के सब दंग रह गए, और बड़े ही आश्चर्य भाव से सोचने लगे कि राम भक्त हनुमान जी ने माता सीता के दिए भेंट के साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया ।

जब हनुमान जी मोती  तोड़ कर फेंक रहे थे तब विभीषण क्रोध से तप रहे थे । और मन ही मन सोच रहें थे कि इस वानर को इस हार की क़ीमत का कोई अंदाज़ा है भी या नहीं जो वो इस बेशक़ीमती हार को तोड़े जा रहा है । हनुमान जी इस कृत्य को लक्ष्मण जी भी देख रहें थे उन्होंने जब अपनी नज़रें भगवान राम की तरफ़ की तो उन्होंने देखा कि भगवान राम हनुमान जी को देखकर मन ही मन मुस्कुरा रहें हैं ।  तब लक्ष्मण जी ने बड़े ही आश्चर्य से पूछा की ये क्या भैया  उधर हनुमान जी माता सीता माता के भेंट उस बेशक़ीमती हार को तोड़े जा रहें हैं और आप उन्हें रोकने के बजाय मुस्कुरा रहें हैं । आख़िर इसके पीछे का भेद क्या हैं?

भगवान राम बोले हे , लक्ष्मण,,, हनुमान जी वानरों में सबसे श्रेष्ठ हैं,, इसलिए उन्होंने ये कुछ सोच समझकर ही ऐसा किया होगा,,, इसलिए मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता और मुझे सच में इसका कारण नहीं पता,,, इसलिए तुम्हें इस जिज्ञासा का उत्तर हनुमान से ही मिलेगा,,, भगवान राम की बातें सुनकर लक्ष्मण जी और विभीषण ने हनुमान से प्रश्न किया कि तब हनुमान जी ने बड़े ही भोलेपन से सबको जबाब दिया कि मेरे लिए हर वो वस्तु व्यर्थ है जिसमें मेरे प्रभु राम का नाम ना हो,,, मैंने यह हार अमूल्य समझ कर लिया था, लेकिन जब मैनें इसे देखा तो पाया कि इसमें कहीं भी राम-नाम नहीं है,,, उन्होंने कहा मेरी समझ से कोई भी अमुल्य वस्तु राम के नाम के बिना अमूल्य हो ही नहीं सकती,,, अतः उसे त्याग देना चाहिए,,,यह बात सुनकर लंकापती विभीषण बोले ‘आपके शरीर पर भी तो राम का नाम नहीं है तो इस शरीर को क्यों रखा है? इस शरीर को भी त्याग दो? विभीषण की बात सुनकर हनुमान ने अपने सीनी को  तेज नाखूनों से फाड़ दिया और उसे विभीषण को दिखाया,,, जिसमें श्रीराम और माता सीता दिखाई दिए,,, यह घटना देख कर लक्ष्मण जी इस बात से आश्चर्यचकित रह गए, और उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ ।

 

 

 

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *